भूख, गरीबी, दरिद्रता तथा अभावों में जीने को मजबूर करती असामाजिक प्रथाऐं। स्वतंत्र लेखक ओजस्वी
मृत्यु भोज गॅगोज करने से जमीन मकान, खेत खलिहान , सब कुछ बिकते गये, रह गये केवल मजदूरी करके पेट भरने को। कोई समय था जब घर में घी दूध अनाज, गुड, तेल अचार, राबडी, ओर चुल्हे की बाटी , दही ओर घी की लापसी की कोई कमी नही रही। कर करके मृत्यु भोज गॅगोज गते ही गल गया सब।

भूख, गरीबी, दरिद्रता तथा अभावों में जीने को मजबूर करती असामाजिक प्रथाऐं। स्वतंत्र लेखक ओजस्वी
संवादाता मुकेश कुमार जोशी चित्तौड़गढ़
गरीबी सबसे बडा रोग है, सामाजिक कुप्रथाऐ, मृत्युभोज इसका सबसे बडा कारण है। भूख, गरीबी, दरिद्रता तथा अभावों में जीने को मजबूर करती असामाजिक प्रथाऐं।
मृत्यु भोज गॅगोज करने से जमीन मकान, खेत खलिहान , सब कुछ बिकते गये, रह गये केवल मजदूरी करके पेट भरने को।
कोई समय था जब घर में घी दूध अनाज, गुड, तेल अचार, राबडी, ओर चुल्हे की बाटी , दही ओर घी की लापसी की कोई कमी नही रही। कर करके मृत्यु भोज गॅगोज गते ही गलगया सब।
जब तक आर्थिक समृद्धि के लिए जीवन को आगे नही लाओगे, गुलाम ही बने रहना है। मृत्यु भोज ना करके इन पैसों से अपने उधोग स्थापित करो, समृद्ध बनो, तभी
हालात सुधर पाऐगें। जो कोई अंधविश्वास रूढ़िवाद आडम्बर के दल दल मे ही गिरे रहते है वे कभी भी अपने सपने साकार नही कर सकते है।
मदन सालवी ओजस्वी
सामाजिक सुधार वादी लेखक
चितोडगढ राजस्थान
22-6-2023