चित्तौड़गढ़ साहित्य उत्सव - 2024 कला, संस्कृति और विरासत को समेटे साहित्य उत्सव का समापन साहित्य और समाज के ज्वलंत मुद्दों पर हुई चर्चा

चित्तौड़गढ 28 फरवरी़। कला, संस्कृति और विरासत के कई रंग बिखरते हुए तीन दिवसीय साहित्य उत्सव - 2024 बुधवार को सम्पन्न हुआ। युवाओं के साथ स्कुली विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी ने इस उत्सव को आकर्षण का केन्द्र बनाएं रखा। तीन दिवसीय इस आयोजन में साहित्य और समाज के ज्वलंत मुद्दों को लेकर बेबाकी से बात हुई वहीं श्रोताओं के लिए खुले सत्रों के आयोजन से श्रोताओं को अपने मन की बात रखने का भी अवसर मिला।

चित्तौड़गढ़ साहित्य उत्सव - 2024  कला, संस्कृति और विरासत को समेटे साहित्य उत्सव का समापन  साहित्य और समाज के ज्वलंत मुद्दों पर हुई चर्चा
चित्तौड़गढ़ साहित्य उत्सव - 2024  कला, संस्कृति और विरासत को समेटे साहित्य उत्सव का समापन  साहित्य और समाज के ज्वलंत मुद्दों पर हुई चर्चा
चित्तौड़गढ़ साहित्य उत्सव - 2024  कला, संस्कृति और विरासत को समेटे साहित्य उत्सव का समापन  साहित्य और समाज के ज्वलंत मुद्दों पर हुई चर्चा
चित्तौड़गढ़ साहित्य उत्सव - 2024  कला, संस्कृति और विरासत को समेटे साहित्य उत्सव का समापन  साहित्य और समाज के ज्वलंत मुद्दों पर हुई चर्चा

चित्तौड़गढ़ साहित्य उत्सव - 2024

कला, संस्कृति और विरासत को समेटे साहित्य उत्सव का समापन

साहित्य और समाज के ज्वलंत मुद्दों पर हुई चर्चा

चित्तौड़गढ 28 फरवरी़। कला, संस्कृति और विरासत के कई रंग बिखरते हुए तीन दिवसीय साहित्य उत्सव - 2024 बुधवार को सम्पन्न हुआ। युवाओं के साथ स्कुली विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी ने इस उत्सव को आकर्षण का केन्द्र बनाएं रखा। तीन दिवसीय इस आयोजन में साहित्य और समाज के ज्वलंत मुद्दों को लेकर बेबाकी से बात हुई वहीं श्रोताओं के लिए खुले सत्रों के आयोजन से श्रोताओं को अपने मन की बात रखने का भी अवसर मिला।

यूथ मूवमेंट ऑफ राजस्थान के तत्ववधान में आयोजित साहित्य उत्सव के समापन सत्र में अफ्रीकी और अमेरिकी गुलाम महिलाओं और भारत में दलित महिलाओं की पीड़ा पर तुलनात्मक अध्ययन विषय पर बात करते हुए डॉ. के.एस कंग और डॉ. तराना परवीन ने पितृसत्तात्मक सोच के बीच गुलामी मानसिकता और पीड़ा की दास्तां के मार्मिक पहलुओं को दृष्टिगत किया। परिचर्चा का संचालन शांति सक्सेना ने किया। ‘‘मीरा और उसकी शायरी का पैगाम’’ सत्र में डॉ. सुशीला लढ्ढा, सर्वत खान, कुलसुम बानो, हरिष तलरेजा शाइस्ता बानो ने मीरा की रचनाओं के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया। ं

लोक में राजस्थानी साहित्य के सत्र में शारदा कृष्णा और रीना मेनारिया में राजस्थानी साहित्य की महत्ता और विशेषताओं को बारीकी से श्रोताओं के समक्ष रखा। सिनेमा ओटीटी व समाज के दृष्टिकोण को लेकर आयोजित सत्र मे बढ़ती तकनीक के साथ मनोरंजन के नाम पर सांस्कृतिक प्रदुषण के सीधे घरों तक की पंहुच को भविष्य की भयावह स्थिति के रूप में इंगित किया गया।  

समापन समारोह को संबोधित करते हुए यूथ मूवमेंट ऑफ राजस्थान संरक्षक अनिल सक्सेना ने कहा कि राजस्थान के प्रत्येक विधानसभा में पत्रकारिता और साहित्य को लेकर जो कार्यक्रम किए गए उसी क्रम की अगली कडी के रूप में साहित्य उत्सव 2024 भी था। यूथ मूवमेंट ऑफ राजस्थान के अध्यक्ष शाष्वत सक्सेना ने कहा कि चित्तौड़गढ़ में इस प्रकार के साहित्यिक आयेजन निरन्तर जारी रहे इसके लिए संस्था प्रतिबद्ध है। साहित्य उत्सव के नोडल अधिकारी एवं राजस्थान साहित्य अकादमी के सचिव बंसत सिंह सोलंकी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम साहित्य के उन्नयन और आमजन तक सहज पहुंच के लिए वर्तमान की आवश्यकता है। समापन सत्र सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ सम्पन्न हुआ।  

अनुवाद एक चुनौती, स्वयं को ढालना होता है - डॉ. डाकोत

अंग्रेजी लेखक पार्टिजर की कृति ‘‘एन्षिएन्ट इंडियन हिस्टोरिकल ट्रेडिषन‘‘ का हिन्दी अनुवाद प्राचीन भारत की ऐतिहासिक अनुश्रुति से प्रस्तुत करने वाले वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ. मुन्नालाल डाकोत ने कहा कि अनुवादक को मूल कृति के लेखक की भावनाओं में स्वयं को ढालते हुए पठनीय सामग्री प्रस्तुत करना एक चुनौती से कम नहीं है। इस सत्र में सहायक आचार्य डॉ. राजेन्द्र सिंघवी से परिचर्चा करते हुए डॉ. डाकोत ने कहा कि भारतीय पौराणिक इतिहास को वैज्ञानिक प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत करने का कार्य पार्टिजर ने किया हैं। सुधी पाठकों से भाषा की कलिष्टता के कारण इस महत्वपूर्ण कृति के दूर होने के दर्द ने यह अनुवाद करने को प्रेरित किया है।

अन्याय का प्रतिकार ही जनमत का जयघोष- डॉ. मृदुल

प्रबंध काव्य ‘‘जनमत का जयघोष’’ पर परिचर्चा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. षिव मृदुल ने कहा कि उनकी यह रचना जनशक्ति के वंदन से मानव मूल्यों की स्थापना से प्रेरित है। प्रहलाद और हिरण्यकष्यप की पौराणिक पृष्ठभूमि में सम्पूर्ण कथानक मानव मूल्यों की रक्षार्थ अन्याय के प्रतिकार के लिए खड़ा दिखता है। होलिका को नई अवधारणा के साथ उदात्त महिला चरित्र एव आदर्ष के रूप उजागर करना काव्य की विशेषता रही है। परिचर्चा का संचालन डॉ. रमेश मयंक ने किया।