एक क़ानून ये भी बने, जो अपने माता पिता को वृद्धाश्रम छोड़े, उनको 1 महीना अनाथाश्रम भेजा जाए.....!!
विदेशो के बदलते परिवेश मे हमारे देश मे भी कुछ बरसो से एक ट्रेंड सा चल गया है। शादी नहीं होने तक तो अपने बेटे का माता पिता बड़े अच्छे से ख्याल रखते है लेकिन जैसे ही बेटे को पढ़ा लिखा होशियार बना शादी करवा दी जाती तो उसके बाद वही बेटा अपने बूढ़े माता पिता को संभालने मे असक्षम हो जाता है

एक क़ानून ये भी बने, जो अपने माता पिता को वृद्धाश्रम छोड़े, उनको 1 महीना अनाथाश्रम भेजा जाए.....!!
संवादाता मुकेश कुमार जोशी चित्तौड़गढ़
विदेशो के बदलते परिवेश मे हमारे देश मे भी कुछ बरसो से एक ट्रेंड सा चल गया है। शादी नहीं होने तक तो अपने बेटे का माता पिता बड़े अच्छे से ख्याल रखते है लेकिन जैसे ही बेटे को पढ़ा लिखा होशियार बना शादी करवा दी जाती तो उसके बाद वही बेटा अपने बूढ़े माता पिता को संभालने मे असक्षम हो जाता है
और उन्हें जैसे जानवरो को बाड़े मे धकेलते है वैसे वृद्धाश्रम मे धकेल आता है, इससे बड़ी दुख भरी बात भगवान श्री राम के भारत मे और क्या हो सकती है, जिन्होंने वचन निभाने के लिए 14 साल वनवास काटा वहाँ आज बेटा 14 साल अपने ही माता पिता को साथ नहीं रख पाता है, ये हमारे सभ्यता संस्कृति वाले देश के लिए बड़े दुर्भाग्य कि बात है, ऐसे मे सरकार को भी एक अहम कदम उठाने कि जरुरत है कि देश के जितने भी वृद्धाश्रम मे वृद्धजन है उनकी नकारा औलादो का डेटा निकालकर उन वृद्ध माता पिता के बेटा और बहु को सिर्फ एक माह के लिए अनाथाश्रम मे रखा जाए यक़ीनन वो 15 दिन भी वहाँ नहीं रुक पाएंगे और अपने माता पिता को ससम्मान वृद्धाश्रम से पुनः घर लेकर आएंगे, अगर ऐसा होता है तो वृद्धाश्रमो के ताले लग जायेंगे और जिस तरह हमारे भारत मे किसी जमाने मे संयुक्त परिवार कि प्रथा चला करती थी उसका फिर से चलन होगा इससे ना सिर्फ वृद्धजन को उनका खोया सम्मान वापस मिलेगा बल्कि संयुक्त परिवार से बच्चों मे संस्कार और सुशिक्षा का विकास होगा जिससे आज जो ये कांड हम आएदिन देख रहें है उनमे काफ़ी हद तक कमी आएगी, यहाँ मुझे संस्कृत कि एक युक्ति याद आती है कि शठे शाठ्यम समाचरेत् अतार्थ जैसे के साथ तैसा व्यवहार, इसलिए आज के इस बदलते युग मे ऐसा करना आवश्यक है तभी हम परिवार का वटवृक्ष वृद्धजन का सम्मान और उनका हक पुनः लोटा पाएंगे।
मेरा यह लिखने का उद्देश्य किसी कि भावनाओं को ठेस पंहुचाना नहीं बल्कि इस बदलते परिवेश मे एक उम्मीद कि किरण जगाना मात्र है।
ओम जैन शम्भूपुरा
चित्तौडग़ढ़ राजस्थान