क्षेत्र में किसान खेतों में हकाई जुताई करने कि तैयारी शुरू 

बड़ी सादड़ी उपखंड क्षेत्र निकटवर्ती ग्राम पंचायत रति चंद जी का खेड़ा के रघुनाथपुरा रति चंद का खेड़ा सभी गांव रघुनाथपुरा गांव रामसिंह मीणा ने जानकारी देते हुए बताया गया है कि कोई किसान बैलों से तो कोई किसान ट्रैक्टर से लगी यंत्र से जुताई करते हैं जिससे मिट्टी कटती है और पलट भी जाती है। इस प्रकार कई बार जुताई करने से एक निश्चित गहराई तक मिट्टी फसल उपजाने योग्य बन जाती है। ऐसी उपजाऊ मिट्टी की गहराई साधारणत: एक फुट तक होती है। उसके नीचे की भूमि, जिसे गर्भतल कहते हैं, जो कि अनुपजाऊ रह जाती है। इस गर्भतल को भी गहरी जुताई करनेवाले यंत्र से जोतकर मिट्टी को उपजाऊ बना सकते हैं। यदि यह गर्भतल किसी भी यंत्र द्वारा जोता न जाए और हल सर्वदा एक निश्चित गहराई तक कार्य करता रहे तो उस गहराई पर स्थित जमीन के गर्भतल की ऊपरी सतह अत्यंत कठोर हो जाती है। पूर्व में बेलो के पीछे हल बांधकर इसकी जुताई की जाती थी लेकिन आज के जमाने में संभव नहीं है तो ट्रैक्टर से किया जाता है। यह कठोर मिट्टी खेती के लिए अत्यंत हानिकारक सिद्ध होती है, क्योंकि वर्षा या सिंचाई से खेत में अधिक जल हो जाने पर वह इस कठोर मिट्टी को भेदकर नीचे नहीं भेज पाता। अत: मिट्टी में अधिक समय तक जल भरा रहता है और अनेक प्रकार की हानियाँ उत्पन्न हो जाती हें। उन हानियों से बचने के लिए उस कठोर मिट्टी को हल् से प्रत्येक वर्ष तोड़ना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। मिट्टी के कणों के परिमाण पर मिट्टी की बनावट और उनके क्रम पर मिट्टी का विन्यास निर्भर है। जुताई से बनावट तथा विन्यास में परिवर्तन करके हम मिट्टी को इच्छानुसार शस्य उत्पन्न करने योग्य बना सकते हैं।

क्षेत्र में किसान खेतों में हकाई जुताई करने कि तैयारी शुरू 

क्षेत्र में किसान खेतों में हकाई जुताई करने कि तैयारी शुरू 

राम सिंह मीणा रघुनाथपुरा 

8जून  

बड़ी सादड़ी उपखंड क्षेत्र निकटवर्ती ग्राम पंचायत रति चंद जी का खेड़ा के रघुनाथपुरा रति चंद का खेड़ा सभी गांव रघुनाथपुरा गांव रामसिंह मीणा ने जानकारी देते हुए बताया गया है कि कोई किसान बैलों से तो कोई किसान ट्रैक्टर से लगी यंत्र से जुताई करते हैं जिससे मिट्टी कटती है और पलट भी जाती है।

इस प्रकार कई बार जुताई करने से एक निश्चित गहराई तक मिट्टी फसल उपजाने योग्य बन जाती है। ऐसी उपजाऊ मिट्टी की गहराई साधारणत: एक फुट तक होती है। उसके नीचे की भूमि, जिसे गर्भतल कहते हैं, जो कि अनुपजाऊ रह जाती है। इस गर्भतल को भी गहरी जुताई करनेवाले यंत्र से जोतकर मिट्टी को उपजाऊ बना सकते हैं। यदि यह गर्भतल किसी भी यंत्र द्वारा जोता न जाए और हल सर्वदा एक निश्चित गहराई तक कार्य करता रहे तो उस गहराई पर स्थित जमीन के गर्भतल की ऊपरी सतह अत्यंत कठोर हो जाती है। पूर्व में बेलो के पीछे हल बांधकर इसकी जुताई की जाती थी लेकिन आज के जमाने में संभव नहीं है तो ट्रैक्टर से किया जाता है। यह कठोर मिट्टी खेती के लिए अत्यंत हानिकारक सिद्ध होती है, क्योंकि वर्षा या सिंचाई से खेत में अधिक जल हो जाने पर वह इस कठोर मिट्टी को भेदकर नीचे नहीं भेज पाता। अत: मिट्टी में अधिक समय तक जल भरा रहता है और अनेक प्रकार की हानियाँ उत्पन्न हो जाती हें। उन हानियों से बचने के लिए उस कठोर मिट्टी को हल् से प्रत्येक वर्ष तोड़ना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। मिट्टी के कणों के परिमाण पर मिट्टी की बनावट और उनके क्रम पर मिट्टी का विन्यास निर्भर है। जुताई से बनावट तथा विन्यास में परिवर्तन करके हम मिट्टी को इच्छानुसार शस्य उत्पन्न करने योग्य बना सकते हैं।

बीज बोने के लिए उच्च कोटि की मिट्टी प्राप्त करने के निमित्त सर्वप्रथम मिट्टी पलटनेवाले किसी भारी हल का उपयोग किया जाता है। इसके बाद ट्रैक्टर या बैलों से हलके हल से जुताई की जाती है जिसमें बड़े ढेले न रह जाएँ और मिट्टी भुरभुरी हो जाए। यदि बड़े-बड़े ढेले हों तो बेलन (रोलर) या पाटा का उपयोग किया जाता है, जिससे ढेले फूट जाते हैं। जुताई के किसी यंत्र का उपयोग मुख्यत: मिट्टी की प्रकृति तथा ऋतु की दशा पर निर्भर है। बीज बोने के पहले अंतिम जुताई अत्यंत सावधानी से करनी चाहिए, क्योंकि मिट्टी में आर्द्रता का संरक्षण इसी अंतिम जुताई पर निर्भर है और बीज के जमने की सफलता इसी आर्द्रता पर निर्भर है। यह आर्द्रता मिट्टी की केशिका नलियों द्वारा ऊपरी तह तक पहुँचती है। ये केशिका नलियाँ कणांतरिक छिद्रों से बनती हैं। ये छिद्र जितने छोटे होंगे, केशिका नलियाँ उतनी ही पतली और सँकरी होंगी और कणांतरिक जल मिट्टी में उतना ही ऊपर तक चढ़ेगा। इन छिद्रों और इसलिए केशिका नलियों के आकर का उपयुक्त या अनुपयुक्त होना जुताई पर निर्भर है इस प्रकार किसान अपने खेतों में खाद डाल कर उपजाऊ क्षमता बढ़ा रहे हैं और कोई हल चलाकर खेत को बारिश के लिए तैयार कर रहा है l