राजकाज के बाद गौ महिमा का वंदन

» आरएएस अधिकारी राकेश पुरोहित को माना जाता है प्रशासनिक संत » गौ सेवा के लिए अब तक कर चुके हैं 200 कथाएं

राजकाज के बाद गौ महिमा का वंदन
राजकाज के बाद गौ महिमा का वंदन

निहाल दैनिक समाचार पत्र

4/3/2023

कपासन ब्यूरो चीफ शोभा लाल जाट 

राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राकेश पुरोहित राजस्थान के अधिकारियों में प्रशासनिक संत के नाम से पहचाने जाते हैं। अक्सर प्रशासनिक अधिकारियों को राज काज से ही फुर्सत नहीं मिल पाती, लेकिन राकेश पुरोहित न केवल अपना सरकारी कामकाज ईमानदारी से निभाते हैं बल्कि समय प्रबंधन के जरिए कथा कर गौ महिमा का वंदन भी करते हैं। अब तक वे लगभग 200 स्थानों पर कथाएं कर चुके हैं जिनमें राजस्थान के साथ-साथ गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र भी शामिल है। पुरोहित वर्तमान में यहां जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पदभार संभाले हैं। ललाट पर बड़ा सा चंदन का तिलक, प्रशासनिक अधिकारियों में उन्हें एक अलग पहचान देता है। उनका मानना है कि भारतीय संस्कृति सनातन धर्म का मूल गौमाता है। गौ माता की सेवा से दया करुणा और सहानुभूति का आविभाव होता है। मूल रूप से सिरोही के आदर्श डुंगरी गांव में एक साधारण से परिवार में डूंगर राम राजपुरोहित के घर जन्मे राकेश का हिंदी साहित्य में पीजी करने के बाद बतौर शिक्षक पद के लिए चयन हो गया। 3 साल बाद वर्ष 2008 मैं उनका राजस्थान प्रशासनिक सेवा में चयन हो गया। अब तक जालौर, जसवंतगढ़, भीनमाल, राजसमंद तथा आमेट में बतौर प्रशासनिक अधिकारी सेवाएं देने के बाद सरकार द्वारा चित्तौड़गढ़ भेजा गया। लेकिन भौगोलिक दृष्टि से बड़ा जिला होने के बावजूद भी माता की सेवा का जुनून खत्म नहीं हुआ। उल्टा यहां गौ कथा का काम और भी बढ़ गया।

10 साल पहले आया नया मोड़

उनके जीवन में 2012 में उस समय नया टर्निंग प्वाइंट आया जब पहली बार नंद गोवा गौशाला को संतो के आदेश पर उन्होंने आवास गोशाला बना दिया जो कि उनके कार्यस्थल से 17 किलोमीटर दूर थी। साढ़े 4 साल तक नित्य आवास स्थली गौशाला ही रही। उसके बाद उनका जीवन गौ माता को समर्पित हो गया।

नाना के आदशों का प्रभाव.. पुरोहित पर अपने नाना के आदशों का

काफी प्रभाव पड़ा। आबू रोड के पास रहने वाले नाना धीराराम जी रेलवे में थे और गीता के प्रखंड विद्वान थे। बाल्य काल में पुरोहित जब अपने ननिहाल जाते तो वहां नाना की दिनचर्या से काफी प्रभावित हुए। सातवीं क्लास में

अनृता समय प्रबंधन, पत्नी का भी साथ

राजकाज के साथ गौ माता की महिमा को देखकर समय कैसे निकाल पाते हैं? ईटीवी भारत ने जब पुरोहित से संपर्क किया तो उनका कहना था कि प्रपंच से दूर रहकर टाइम निकाला जा सकता है। इसमें मेरी पत्नी मनस्वी का भी पूरा साथ मिल रहा है जिन्होंने परिवार और बच्चों का जिम्मा संभाल रखा है। नौकरी के साथ-साथ टाइम मैनेजमेंट कर कोई भी व्यक्ति 3 से 4 घंटे आराम से अपने काम करता है।

कथा के लिए जिला परिषद पहुंच जाते हैं लोग

सीईओ पुरोहित की कथा के प्रति लोगों में कितना क्रेज है, इस बात से देखा जा सकता है कि कथा कराने वाले सबसे पहले पुरोहित के पास पहुंचकर उनसे समय मांगते हैं। बकायदा पुरोहित द्वारा इसके लिए एक अलग से डायरी है जिसमें राजकीय अवकाश को देखकर उसी के अनुरूप कथा का टाइम टेबल निर्धारित करते हैं। स्थिति यह है कि ग्रामीण उनकी अनुमति के बाद ही कथा के आयोजन का समय निर्धारित करते हैं।

अब तक मुखारविंद से हो चुकी है 200 कथाए अप्रैल 2007 में भीनमाल के भादरड़ा गांव में उनकी पहली कथा हुई।

इसके बाद आस-पास के गांव में भी उनकी डिमांड बढ़ गई और धीरे धीरे सिरोही और जालौर के साथ-साथ पाली, राजसमंद, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक बाड़मेर तक उनकी ख्याति फैल गई। अहमदाबाद सूरत मुंबई बैंगलोर आदि में भी गो कथा कर चुके हैं।

उन्हें नाना द्वारा गीता प्रदान की गई। जब हायर एजुकेशन के लिए जयपुर गए तो वहां इस्कॉन से जुड़ गए और शनिवार तथा रविवार को संकीर्तन का जिम्मा संभाल लिया लेकिन वृंदावन के दर्शन के बाद उनके जीवन का मकसद ही बदल गया।

अन्य कार्यों को दे सकता है। इसके लिए अक्सर अवकाश के दिन को चुना जाता है लेकिन यदि आगे कोई अवकाश है तो वह एक-आध दिन की सीएल ले लेते हैं। वैसे अब तक जो भी कथाएं की गई लगभग 90 प्रतिशत अवकाश के दिनों को ही चुना गया। गौ सेवा के लिए 'माँ तेरा तुझको अर्पण' नामक एनजीओ भी बना हुआ है जोकि गायों की चिकित्सा के साथ-साथ उनकी देखरेख आदि का