पशुओं में फैल रही लम्पी स्कीन बीमारी से सावधानी बरतें

पशुओं में फैल रही लम्पी स्कीन बीमारी से सावधानी बरतें
पशुओं में फैल रही लम्पी स्कीन बीमारी से सावधानी बरतें

पशुओं में फैल रही लम्पी स्कीन बीमारी से सावधानी बरतें पशुओं में फैल रही लम्पी स्किन बीमारी ( ढेलेदार त्वचा रोग ) ने पशुपालकों की चिंता बढ़ा दी है । वातावरण में नमी व गर्मी बढ़ने के कारण यह बीमारी देश के विभिन्न प्रदेशों में जैसे मध्यप्रदेश , गुजरात , महाराष्ट्र , राजस्थान आदि राज्यों में फैली हुई है । यह पशुओं में तेजी से फैलने वाला विषाणुजनित गांठदार त्वचा रोग है । गांठदार त्वचा रोग अफ्रीका और पश्चिमी एशिया के कुछ हिस्सों में होने वाला स्थानीय रोग है जहां पर इस रोग के लक्षण पहली बार 1929 में देखे गये थे । भारत में इस बीमारी के वायरस की पहचान सबसे पहले अगस्त , 2019 में उड़ीसा में हुई थी । राजस्थान में यह बीमारी अभी जैसलमेर , बीकानेर , बाड़मेर , जोधपुर , सिरोही आदि जिलों में फैली हुई है । यह रोग मच्छरों , मक्खियों और जूं के साथ पशुओं की लार तथा दूषित जल एवं भोजन के माध्यम से एक पशु से दूसरे पशुओं में फैलता है । इस बीमारी में गायों में तेज बुखार , शरीर पर गांठें ( मुख्य रूप से सिर , गर्दन , अंडकोष ) व सम्पूर्ण शरीर पर बनती है । त्वचा के घाव कई दिनों तक बने रह सकते है । क्षेत्रीय लसिका ग्रन्थियां सूज जाती है । मादा पशुओं में गर्भपात हो सकता है । पशुओं में दूध की कमी , भूख नही लगना , आंख व नाक से पानी व श्वांस लेने में कठिनाई होती है । इस बीमारी का बचाव ही उपचार है । संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखे । पशुओं के बाड़े में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें । मच्छर , मक्खियों को दूर रखने के लिए फिनाइल आदि का छिड़काव करें । फार्म व पशुओं के बाड़ो के आसपास वेक्टर प्रजनन स्थलों को सीमित करें अर्थात साफ - सफाई का विशेष ध्यान रखें । इस रोग की विशेष औषधि नहीं होने के कारण पशुचिकित्सक से परामर्श पश्चात लक्षणात्मक उपचार करावें । पशुपालक भाई नए पशुओं को अन्य पशुओं से अलग रखें तथा प्रभावित क्षेत्रों से पशुओं की आवाजाही से बचे । इस बीमारी की रोकथाम हेतु टीकाकरण सबसे कारगर उपाय है । वर्तमान में बकरी के चेचक के टीके का प्रयोग इस रोग में उपयोगी सिद्ध हो रहा है । स्वस्थ पशुओं में रोग से बचाव के लिए टीकाकरण करवाया जाना सर्वोत्तम उपाय है । पशुपालक इस बीमारी से भयभीत न होकर पशुचिकित्सक से परामर्श लेकर उचित उपचार व बचाव करें ।