कपड़े से छाना हुआ पानी, स्वास्थ्य ठीक रखता है, और विवेक से छानी हुई वाणी, संबंध को ठीक रखती है, भले ही शब्द' को कोई स्पर्श नहीं कर सकता, पर #शब्द सभी को स्पर्श कर जाते है
जब तक आप अपने जीवन का निर्णय समाज, मजबूरी और प्रभाविकता के कारण लेते रहेंगे तब तक आप अपने साथ धोखा ही देते रहेगें हम अपना सारा निर्णय असुरक्षा के डर से ही लेते हैं, ख़ुद को सुरक्षित महसूस कराने के लिए न जानें कितनी चुनौतियों से दूर भागते हैं, हम उतना ही अंदर से ख़ुद को खोखला कर देते हैं,

कपड़े से छाना हुआ पानी, स्वास्थ्य ठीक रखता है, और विवेक से छानी हुई वाणी, संबंध को ठीक रखती है, भले ही शब्द' को कोई स्पर्श नहीं कर सकता, पर #शब्द सभी को स्पर्श कर जाते है
#सत्य"सदैव सुखदाई होता है.....
संवादाता मुकेश कुमार जोशी चित्तौड़गढ़
जब तक आप अपने जीवन का निर्णय समाज, मजबूरी और प्रभाविकता के कारण लेते रहेंगे तब तक आप अपने साथ धोखा ही देते रहेगें
हम अपना सारा निर्णय असुरक्षा के डर से ही लेते हैं, ख़ुद को सुरक्षित महसूस कराने के लिए न जानें कितनी चुनौतियों से दूर भागते हैं, हम उतना ही अंदर से ख़ुद को खोखला कर देते हैं,
अगर हम निर्णय आन्तरिक सच्चाई के अनुसार लेंगे
तो बाहरी चीजो से वंचित हों जायेंगे जैसे सुख सुविधाएं
और आंतरिक रूप से ओहदा, छवि और संबंध ।
हमें लगता है जहां जहां से हम असुरक्षित महसूस करते हैं, असहज महसूस करते हैं, वहां वहां हमें गुजरना चाहिए,
और हमें अपने असुरक्षा का सामना करना चाहिए
वहीं वहीं से विकास की जड़े छुपी होती हैं।
आज का युग ऐसा है जहां हम न तो सच सुनने में सक्षम है
और न ही सच बोलने पर
क्योंकि सबको सुरक्षित महसूस कराना है,
फील गुड महसूस कराना है और करना।
जरा सा सत्य बोलने पर रिश्ते नाते, लोग सब टूट जाते हैं,
झूठ का फील गुड सबको अच्छा लगता है
इतना छुई मुई हों गए, चार लोगों की बातों को सुन सकने में हम अक्षम हों गए हैं
आंतरिक रूप में आज़ाद नहीं महसूस करते सबके दबाव में जीना शुरू कर देते हैं
सच की बुनियाद पर कुछ भी खड़ा नहीं किया जाता,
मार्केटिंग और ध्यानाकर्षण युग में तो और अधिक फील
गुड, दिखावटी, दबाव में जीते हैं।
और जब जब हम समाज के डर के अनुसार निर्णय लेंगे तब
तक हम खुद को आज़ाद नहीं महसूस करा सकते हैं, उस निर्णय का प्रभाव हम पर ही पड़ता है लोगों पर कभी नहीं पड़ता।
रिशिका मीणा कोटा