किस दिशा की ओर बढते बालक---?---- ओजस्वी

मांता पिता परिवारजन अपने बच्चो को पढने लिखने भेजकर अपने खून पसीने की मेहनत लगाकर, कर्जा लेकर बच्चो को पढा लिखाकर बहुत कुछ सोचते है कि हमारे बच्चे आगे अपने जीवन में तरक्की कर सकेगें। गुणगान संस्कारवान, भले, जागरूक, सावचेत, समझदार हो सकेगें! सामाजिक पारिवारिक बौद्धिक तोर पर विकशित होकर जीवन को सफल बना सकेगे।

किस दिशा की ओर बढते बालक---?---- ओजस्वी

किस दिशा की ओर बढते बालक---?---- ओजस्वी

ब्यूरो चीफ एम के जोशी चित्तौड़गढ़

                          मांता पिता परिवारजन अपने बच्चो को पढने लिखने भेजकर अपने खून पसीने की मेहनत लगाकर, कर्जा लेकर बच्चो को पढा लिखाकर बहुत कुछ सोचते है कि हमारे बच्चे आगे अपने जीवन में तरक्की कर सकेगें। गुणगान संस्कारवान, भले, जागरूक, सावचेत, समझदार हो सकेगें! सामाजिक पारिवारिक बौद्धिक तोर पर विकशित होकर जीवन को सफल बना सकेगे।

ऐसे मे यदि हमारे बालक पढाई लिखाई में पुरा मन लगाने के बजाय

गलत सॅगत की तरफ बढ कर बचपन ही से नशा करना, बीडी सिगरेट पीने, ग़लत सोहबत में चलने, अपने शरीर को नशे का आदि बनाकर खराब करने। अपने मानवीय मुल्य के रास्ते से भटक जाने, मांता पिता से चालाकी ओर झूठ के साथ पेश आने जेसे चलन पर चल पडे तो अंजाम क्या होगा?

इस तरह के हालात हर तरफ देखने को मिल रहै है, पढने जाने के बहाने घर से निकलकर यदि बालक विधालय ही ना जाकर इधर-उधर र वडते , डोलते फिरे तो अंजाम क्या होगा ? यहीं से दो रास्ते बनते है जीवन के। प्रकाश से अंधकार की ओर जाने का, या विधालय जाने से रास्ता बनता है जीवन का प्रकाश से प्रकाश की ओर । विधालय जाने से जीवन बढता हे अंधकार से प्रकाश की ओर।

विधालय जाने से विधार्थी होता है हर तरह से शिक्षित। समझदार, जागरूक, हर तरह की विपत्ति में रास्ता निकालने, आगे बढने की करता हे समझ हासिल। 

विधालय जाने, पढाई करने से पढा लिखा कहलाता है। लोग आदर सम्मान से देखते हैं। पढे लिखें से जीवन के रास्ते पुछे जाते है।

पढा लिखा होने के प्रमाण होते है कि उसमें अहंकार नही होता, वह अपराध नही करता, अपना रहन सहन, खानपान , बैठना उठना सभी कुछ रखता है गुणवान ओर सभ्य। 

पढा लिखा वह जो गलत को गलत ओर सही को सही समझने की रखता है परख। पढा लिखा अपने आचरण व्यवहार नैतिकता, भलाई उच्च आदर्श को अपनी ताकत बनाता है।

गलत सॅगति, गलत शोहबत में कदम नही बढाता।

ऐसे अनेको उदाहरण है आज हर तरफ कि मांता पिता अपने बालको को पढने लिऐ भेजते है, बच्चे पढ लिख कर होशियार, समझदार गुणगान होने के बजाय नशेड़ी, एवॅ झूठ, मक्कारी, घमण्डी, अविवेकी बनकर आता है। तब सारी महनत व्यर्थ हो जाती है। माता पिता की, परिवार की।

अक्षर यह भी देखा जा रहा है कि किसी का बालक विधालय कोलेज पढने जाने के बढाऐ अपने, ऐसजादे दोस्तो के साथ बीडी सिगरेट पीते हूऐ, आवारा टाइप गलियों में भटकते हुए दिखाई देते है मगर अनजान मांता पिता को देखकर भी कोई कुछ बताने की जहमत नही उठाते है, जिससे बुराई की ओर बढती जीवन की नांव बहुत गहराई में चली जाती है, तब तक हालात ये हो जाते , नांव ढूबने के सिवा इस नाव का ओर कोई रास्ता नही लगता।

आज के बालको को सलाह हे कि आप पढ लिखकर बहूत कुछ बनो, आगे बढो, गलतियो खुराफातो, से बचो, अपने मांता पिता को धोखा ना दो ,वरना मांता पिता आपके कृत्य का सदमा सहन नही कर पाऐगें, समय से पहले ही चले जाऐगें। ये जीवन बहुत किम्मत वाला है, इसे समझो, इसका किसी तरह से दुरुपयोग ना करो वरना आपके गलत कर्म का फल विशेला होकर सभी को खाना पडेगा,सभी को बेमौत मरने के लिए विविश होने के जिम्मेदार आप ही होगें। जिन्होने इस जीवन की किम्मत को बचपन से ही जिम्मेदारी के साथ समझ लिया है वे बालक विधार्थी हो या कोई भी गलत आचरण व्यवहार, धोखा कपट बेईमानी, बुरी संगत के शिकार नही होते।

मांता पिता के लिए अपनी संतान ही सबसे बडी ताकत सहारा ओर धन होता है,यदि अपने ओलाद ही ओलाद ना रहे तो क्या हूआ??

मदन सालवी ओजस्वी

स्वतंत्र लेखक 

भारतीय मिशन मीडीया भारत 

चितौडगढ राजस्थान 

3-3-2023