रासेश्वरी देवी जी के प्रवचन में त्रिगुणों का रहस्य और जीवन संतुलन का मंत्र

रासेश्वरी देवी जी के प्रवचन में त्रिगुणों का रहस्य और जीवन संतुलन का मंत्र

*कपासन SR वाटिका में आयोजित विलक्षण दार्शनिक प्रवचन और रस संकीर्तन के प्रथम दिन रासेश्वरी देवी जी ने अपने उद्बोधन से उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। पहले दिन के प्रवचन का मुख्य केंद्र बिंदु प्रकृति के तीन गुण - तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण और उनका जीव पर पड़ने वाला गहरा प्रभाव रहा। देवी जी ने इन गुणों को समझते हुए जीवन को संतुलित करने के दिव्य सूत्र बताए।

प्रवचन के मुख्य अंश:

त्रिगुण का जीवन पर प्रभाव और संतुलन:

रासेश्वरी देवी जी ने विस्तार से समझाया कि कैसे तमोगुण (आलस्य, अज्ञान), रजोगुण (कर्मठता, बेचैनी) और सतोगुण (ज्ञान, शांति) जीव के स्वभाव, विचार और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। उन्होंने जोर दिया कि सच्चा आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए इन तीनों गुणों में संतुलन स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है। जीवन में अत्यधिक तमोगुण आलस्य और गिरावट लाता है, अत्यधिक रजोगुण अशांति और तनाव पैदा करता है, जबकि सतोगुण ही शांति और ज्ञान की ओर ले जाता है। उन्होंने इन गुणों को नियंत्रित कर सत्व गुण में वृद्धि करने के व्यावहारिक तरीके भी बताए।

रिश्तों में स्वार्थ की जड़:

देवी जी ने संबंधों में व्याप्त स्वार्थ की गहरी पड़ताल की। उन्होंने बताया कि संसार में अधिकतर रिश्ते किसी न किसी अपेक्षा या स्वार्थ पर आधारित होते हैं, जिसके कारण उनमें कटुता और अस्थिरता आती है। उन्होंने प्रेम को निःस्वार्थ भाव से जोड़ने पर बल दिया, क्योंकि सच्चा प्रेम केवल ईश्वर से ही संभव है, जहाँ कोई आदान-प्रदान की अपेक्षा नहीं होती।

व्यक्तिगत व्यवहार में अचानक परिवर्तन का रहस्य:

व्यक्तियों के व्यवहार में अचानक आने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डालते हुए रासेश्वरी देवी जी ने इसे इन तीनों गुणों के प्रभाव से जोड़ा। उन्होंने कहा कि मन की चंचलता और बाहरी परिस्थितियों के कारण गुणों का प्रभाव बदलता रहता है, जिससे व्यक्ति के स्वभाव में आकस्मिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं।

संसार की स्वार्थपरकता और जीव का भटकना:-

प्रवचन में यह भी बताया गया कि यह संपूर्ण संसार कहीं न कहीं **स्वार्थ की नींव** पर टिका हुआ है। हर क्रिया के पीछे कोई न कोई अपेक्षा निहित होती है। देवी जी ने कहा कि जीव का मूल स्वभाव **आनंद को प्राप्त करना** है, परंतु संसार में भटकने के कारण वह क्षणिक और नश्वर सुखों के पीछे भागकर अपने वास्तविक आनंद स्वरूप को भूल गया है।

रासेश्वरी देवी जी ने अपने प्रवचन के अंत में जीव को स्मरण दिलाया कि सच्चा और शाश्वत आनंद केवल भगवान के प्रेम और उनके नाम संकीर्तन में ही निहित है। पहले दिन का यह सत्र श्रोताओं के लिए आत्म-चिंतन और आध्यात्मिक उन्नति का एक सशक्त माध्यम बन गया। अगले दिन के प्रवचन में भी और गहरे आध्यात्मिक रहस्यों का अनावरण होने की उम्मीद है।

कार्यक्रम के आरंभ मे पंडित चंद्रशेखर दादीच द्वारा वेद मंत्र के माध्यम से स्वस्ति वाचन किया गया तत् पश्चात

सेवा निवृत उप शिक्षा उपनिदेशक चंद्रशेखर तुलछिया, कपासन नगर पालिका चेयरमेन मंजु देवी सोनी , प्रमोद बारेगामा , सेवा निवृत्त स्टेशन मास्टर बजरंग लाल कुमावत एवं शोभा लाल तुलछिया द्वारा रासेश्वरी देवी का माल्यार्पण व पुष्प गुच्छ प्रदान कर स्वागत किया गया देवी जी द्वारा भी उक्त सभी को राधे नाम वस्त्र देकर आशिर्वाद प्रदान किया गया।

कार्यक्रम के प्रथम दिन ही कॉरिडोर खचाखच भर गया कार्यक्रम के अंत में विशेष मीटिंग रखवाकर मैनेजमेंट टीम ने अतिरिक्त टेंट कुर्सियों की व्यवस्था करवाने एवं सुविधाएं उत्तम बनी रहे , श्रद्धालुओं की उत्तम व्यवस्था पर चर्चा की।