मिलिए बहरूपिया कलाकार छगनलाल भांड से जिसने विश्व के कई मंचों पर किया राजस्थान का नाम रोशन

मिलिए बहरूपिया कलाकार छगनलाल भांड से जिसने विश्व के कई मंचों पर किया राजस्थान का नाम रोशन

निहाल दैनिक समाचार / NDNEWS24X7 

बारू, चित्तौड़गढ़, राजस्थान l जवानी के दिनों गली-गली अपनी कला से दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर कर देने वाले छगनलाल भांड किसी परिचय के मोहताज नहीं उत्तर भारत की परंपरागत लोक कला के कलाकार कई देशों में अपनी कला दिखा चुके हैं l खास भाव भंगिमा और दमदार आवाज के बूते वे हर किसी काे अपनी ओर आकर्षित करते हैं। छगनलाल भांड की उम्र 81साल हो चुकी है लेकिन आज भी अपनी कला से लोगों को अचंभित कर देते हैं। उत्तर भारत की परंपरागत लोक कला के कलाकार कई देशों में अपनी कला दिखा चुके हैं। जीवन में 56 तरह के विचित्र रूप धारण किए। पठान, ईरानी, हनुमान, बंदर, गाडोलिया लाैहार, गाड़ोलन, राजा-महाराजा, डाकू, इंस्पेक्टर, कालिका माता, भालू आदि स्वांगों का कुशल प्रस्तुतीकरण उनकी अपनी विशेषता है। वर्षों तक तरह-तरह के स्वांग रचकर लोगों का मनोरंजन करने वाले छगनलाल भांड को यह कला पिता रामचंद्र भांड से विरासत में मिली।

       गांवों और कस्बों की परिधि में सिकुड़ी बहुरूपिया कला को देश- विदेश में प्रसिद्धि दिलाने में राजस्थान के 81 वर्षीय वयोवृद्ध कलाकार छगन लाल भांड ने अपनी कला से अत्यंत प्रभावित किया है। इन्होंने इस कला में इतनी दक्षता प्राप्त कर ली है l अहमदाबाद में जनवरी 1990) आयोजित “राष्ट्रीय बहुरूपिया सम्मेलन” में भी उन्होंने अपनी स्वांग कला का अद्भुत प्रदर्शन कर दर्शकों का मन मोह पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर शिल्पग्राम मैं भी अपनी कला से लोगों का बहुत मनोरंजन किया l

     बहरूपिया कला पूरे राजस्थान में प्रचलित है। बहुरूपिए अपना रूप चरित्र के अनुसार बदल लेते हैं और उसी के चरित्र के अनुरूप अभिनय करने में प्रवीण होते हैं । अपने श्रृंगार और वेषभूषा की सहायता से वे प्राय: वही चरित्र लगने लग जाते हैं, जिसके रूप की नकल वह करते हैं। कई बार तो असल और नकल में भेद भी नहीं कर पाते हैं और लोग चकरा जाते हैं।

      देवी –देवताओं, इतिहास पुरुषों व महापुरुषों का रूप धारण करने के अलावा ये गाँव के धनी-मानी लोगों की भी नकल करते हैं। गाँव के बोहरा, सेठजी, बनिया आदि भी इनके मुख्य पात्र होते हैं। पौराणिक ग्रंथों में भी इस कला के प्रचलित होने के प्रमाण मिलते हैं। हिन्दू राजाओं तथा मुग़ल बादशाह ने भी इस कला को उचित प्रश्रय दिया था l

     कंप्यूटर, मोबाइल व इंटरनेट के युग में भी बारू के छगनलाल भांड पौराणिक बहरूपिया कला से देश-दुनिया में लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं l जहां छगनलाल भांड विभिन्न तरह की वेशभूषा पहनकर प्रतिदिन लोगों का मनोरंजन कर परिवार का भरण पोषण करते हैं l लगभग 60 वर्ष से छगनलाल अपने परिवार का इस कला से भरण-पोषण कर रहे हैं l विभिन्न तरह की वेशभूषा पहनकर अच्छी कला का प्रदर्शन करने के कारण कई खिताब मिले हैं l जहां छगन लाल भांड वर्तमान में नए लड़कों को भी इस कला को सिखा रहे हैं l

      वही पौराणिक बहरूपिया कला अभी भी जीवित जहां देश में हर हाथ में मोबाइल है और मनोरंजन के काफी साधन हो चुके हैं, वहीं पौराणिक बहरूपिया कला अभी भी जीवित हैं l जिससे विभिन्न तरह की वेशभूषा पहनकर लोगों का मनोरंजन किया जाता है l ऐसे ही बारु के छगनलाल भांड विभिन्न तरह की वेशभूषा पहनकर बहरूपिया बनते हैं, जो सामाजिक एवं धार्मिक आयोजन में भाग लेकर अपना परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं l यहां तक कि छ्गन लाल ने समाज के अन्य युवाओं को भी इस कला से जोड़ने के लिए प्रयास कर रहे हैं और उनको भी इस कला को सिखा रहे हैं l

60 वर्ष से कर रहे लोगों का मनोरंजन

   देश के प्रसिद्ध बहरूपिया कलाकार छगनलाल भांड से बात करते हुए बताया कि जब वो 14-15 साल के थे, तब से इस कला के साथ जुड़े हुए हैं, 60 वर्ष से यह वेशभूषा पहनकर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं. वो गाडोलिया लुहार, कालबेलिया, पठान, ईरानी, फकीर, भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती सहित विभिन्न स्वरूप की वेशभूषा पहनकर लोगों का मनोरंजन करते हैं l उन्होंने बताया कि इसकी शुरुआत सबसे पहले 60 वर्ष पहले चित्तौड़गढ़ से की थी, जहां पहले के समय उदयपुर महाराजा के वहां महलों में इस कला का प्रदर्शन करने जाते थे, जहां राज दरबार के सामने प्रदर्शन कर मनोरंजन कर उन्हें हंसाते थे और हमारे को नजराने के रूप में कुछ आर्थिक सहयोग मिलता था, वर्तमान कंप्यूटर, मोबाइल के युग में बहरूपिया कला लोग पसंद करते हैं. इस पर छगन लाल ने कहा कि लोग बहुत पसंद करते हैं, हमारा उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना, आदमी को हंसाना हर तरह की लैंग्वेज व परिभाषा बोलना काम है और इस युग में भी लोग बेहरूपिया कला को जरूर देखते हैं l

     वहीं सरकार से सहायता के सवाल पर छगनलाल ने कहा कि अभी तक कोई भी सहायता नहीं मिली, उन्होंने प्रशासनिक अधिकारी व राजनेताओं से भी मुलाकात की लेकिन इस कला को जीवित रखने के लिए कुछ भी नहीं किया गया l

भांड की भांड़ई-भांड का टिप्पणा

भांड आया गुवा का घाड़ा आया भांड आया गणेश जी महाराज आया 

भांड आया ने पीरा का पीर आया भांड आया राम जी का छोटा भाई लक्ष्मण जी आया

घी भरो तो भांडा में 

गोल भरो तो भांडा में 

कसार भरो तो भांडा में 

छोरा छोरी ढान्डा में

रेबारी हांडा में 

भूखा ने मरिया मांडा में 

कुरारी रेगी डांडा में

यदि कोई जजमान भांड को दातारी में कुछ नहीं देता तो वह कुछ उनकी आलोचना इस प्रकार करते हैं l

बाप तो अति दास पुत्र तो पूरो ही दिवालो है काको तो कंगालदास भिखारी दास भाई है मामो तो मदारीदास दादो तो दिगंबरदास सालों तो शन्खीदास जोगीदास जमाई है ऐसे तो पूरा परिवार दास धिन्गड़ता बढ़ाई है मांगन की आस कर लाज घाट की गमाई है l

बहरूपिया कलाकार छगनलाल भांड ने राजस्थान सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी से निवेदन किया है कि सरकार हमारे बहरूपिया कलाकारों के लिए भी कुछ करें, हम लोग कहां जाएं, हमारी कला की कद्र करें l