*23 मार्च के दिन भारत के सपूतों शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने फांसी की सजा को गले लगाया था : देश में शहीदों के सम्मान उनके बलिदान को याद करने के लिए आज का दिन (23 मार्च) को शहीद को श्रद्धांजलि दी जाती है।*

*23 मार्च के दिन भारत के सपूतों शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने फांसी की सजा को गले लगाया था : देश में शहीदों के सम्मान उनके बलिदान को याद करने के लिए आज का दिन (23 मार्च) को शहीद को श्रद्धांजलि दी जाती है।*

रिपोर्टर  प्रकाश सोलंकी पीपलवास

चित्तौड़गढ़। शहीद दिवस पर शहीदों को किया नमन एवं पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। *भगत सिंह के बारे में रोचक तथ्य।*
8 वर्ष की छोटी उम्र में ही वह भारत की आजादी के बारे में सोचने लगे थे और 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था.
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भगत सिंह के माता-पिता ने जब उनकी शादी करवानी चाही तो वह कानपुर चले गए थे. उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि 'अगर गुलाम भारत में मेरी शादी होगी तो मेरी दुल्हन मौत होगी. इसके बाद वह 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' में शामिल हो गए थे।
हो गए थे.
भगत सिंह ने जेल में 116 दिनों तक उपवास किया था. आश्चर्य की बात यह है कि इस दौरान वे अपने सभी काम नियमित रूप से करते थे, जैसे- गायन, किताबें पढ़ना, लेखन, प्रतिदिन कोर्ट आना, इत्यादि.।
ऐसा कहा जाता है कि भगत सिंह मुस्कुराते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए थे. वास्तव में निडरता के साथ किया गया उनका यह अंतिम कार्य 'ब्रिटिश साम्राज्यवाद को नीचा दिखाना था.
जब उसकी मां जेल में उनसे मिलने आई थी तो भगत सिंह जोरों से हंस पड़े थे. यह देखकर जेल के अधिकारी भौचक्के रह गए कि यह कैसा व्यक्ति है जो मौत के इतने करीब होने के बावजूद खुले दिल से हंस रहा है।
*राजगुरु के बारे में रोचक तथ्य।*
राजगुरू का पूरा नाम शिवराम हरी राजगुरू था और उनका जन्म पुणे के निकट खेड़ में हुआ था.
राजगुरू चंद्रशेखर आजाद के चहेते थे और भगत सिंह से वो चुहल करते थे. जगतगुरू शंकराचार्य ने उन्हें व्रत रखने की आदत डाली और बाद में उन्होंने आरएसएस के संस्थापक डॉ हेडगेवार ने भी उनको शरण और अपना आशीर्वाद दिया.
राजगुरू को उनके अंदाज और शूटिंग स्किल्स के लिए उन्हें टाइटल दिया गया दि मैन ऑफ एचएसआरए. सांडर्स की हत्या करने में भी राजगुरू शामिल थे, आजाद के मना करने के बाद भी वह पिस्तौल लेकर सेंट्रल असेम्बली चले गए और उसी पिस्तौल से फायर कर दिया. नतीजा यह हुआ कि इस कांड में तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई।
राजगुरू को उनकी निडरता और अजेय साहस के लिए जाना जाता था. उन्हें भगत सिंह की पार्टी के लोग "गनमैन" के नाम से पुकारते थे।
*सुखदेव के बारे में रोचक तथ्य।*
सुखदेव फंसी की सजा मिलने पर डरने की बजाय खुश थे. फांसी से कुछ दिन पहले महात्मा गांधी को लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा था कि "लाहौर षडयंत्र मामले के तीन कैदी को मौत की सजा सुनाई गई है और उन्होंने देश में सबसे अधिक लोकप्रियता प्राप्त की है जो अब तक किसी क्रांतिकारी पार्टी को प्राप्त नहीं है. वास्तव में, देश को उनके वक्तव्यों से बदलाव के रूप में उतना लाभ नहीं मिलेगा जितना लाभ उन्हें फांसी देने से प्राप्त होगा.सुखदेव बचपन से ही जिद्दी व सनकी स्वभाव के थे. उन्हें पढ़ने लिखने में कोई विशेष रुचि नहीं थी. अगर कुछ पढ़ लिया तो ठीक ना पढ़ा तो ठीक लेकिन वह बहुत गहरा सोचते थे. ये बहुत देर तक किसी एकांत जगह पर बैठ जाते और न जाने किस चीज के बारे में सोचते रहते।